Wednesday, November 12, 2008

सेंसेक्स का डाऊनफॉल और हम


विष्णु राजगढ़िया
फेिस्टवलों के पीरियेड में सेंसेक्स का डाऊन हो गया। सबके लिए प्रोब्लम। जिनके पास खोने को कुछ नहीं, उन्हें भी और जिनके पास खोने के बहुत कुछ है, उन्हें भी। जो लुजर थे, उनका अपसेट होना नेचुरल था। लेकिन जिनका सीधे तौर पर कुछ नहीं गया, उनके लिए भी डिस्टर्ब होने के कई जेनुइन या अननेसेसरी कारण थे। ऐसे में धनतेरस पर मोबाइल में आया एक एसएमएस इस सेंसेक्स फेनोमेना पर दिलचस्प कमेंट है। धनतेरस की शुभकामना देते हुए इस एसएमएस में अगले दिन दिवाली और आठ दिन बाद छठ की भी गि्रटिंग्स इनक्लुड थी। उसी एसएमएस में क्रिसमस डे और न्यू ईयर को भी निपटाते हुए बताया गया था कि गि्रटिंग्स का यह किफायती और कॉम्बो पैक है क्योंकि आर्थिक मंदी के इस दौर में आखिर बचत ही तो सहारा है।हालांकि इस सो-कॉल्ड किफायती एसएमएस भेजने वाले मित्र का नेचर मुझे अच्छी तरह मालूम है। वह एसएमएस भेजने के किसी भी ओकेजन को मिस नहीं करता, आगे भी नहीं करेगा। किफायती और कॉम्बो पैक भेजने के बावजूद उसने दिवाली का अलग एसएमएस भेजा। क्रिसमस डे और न्यू ईयर पर भी उससे यही उम्मीद है। इसलिए वल्र्ड इकोनोमी के डाऊनफॉल का कोई इम्पैक्ट उसकी एसएमएस भेजने की प्रैिक्टस पर पड़ता नजर नहीं आता। लेकिन इस एसएमएस में सोसाइटी की प्रेजेंट साइकोलोजी की झलक बेहद दिलचस्प तरीके से देखी जा सकती है।ऐसे लोगों की संख्या काफी बड़ी है, जिन्हें सेंसेक्स और इसके डाऊनफॉल का मतलब नहीं मालूम। जिन दिनों यह ग्रेट फॉल हो रहा था, उन दिनों मेरे जैसे लाखों लोग इससे बेखबर थे। कहीं चर्चा होती भी तो अनसुना कर जाते। उन्हीं दिनों छोटे भाई ने जब सेंसेक्स गिरने पर चिंता जतायी तो मैं सहज पूछ बैठा- यह क्या होता है? मेरे सवाल पर भाई को यकीन नहीं हुआ। उसे लगा कि मैं जानते हुए भी पूछकर उसको टेस्ट कर रहा हूं या फिर रेगिंग कर रहा हूं। वह अविश्वासपूर्वक मेरे सवाल को टाल गया। संभव है कि मेरी तरह खुद उसे भी सेंसेक्स का प्रोपर नॉलेज नहीं हो। लेकिन इतना तो हम दोनों ही जानते थे कि शेयर बाजार में भारी गिरावट है। इससे बड़ी-बड़ी कंपनियों से लेकर शेयर में पैसा लगाने वाले सामान्य लोगों तक को भारी नुकसान हुआ है। माकेZट में कैपिटल की क्राइसिस हो चुकी है।मेरे जैसे जिन लोगों ने कभी शेयर का मुंह तक न देखा हो, वे शुरू में बेफिक्र रहे कि गिरता रहे सेंसेक्स, अपना क्या। लेकिन फिर नौकरियों पर आफत और छंटनी की खबरें आने लगीं। फिर पता चला कि कंपनियों में कामगारों के वेतन में सालाना इंक्रीमेंट पर भी इंपैक्ट आने वाला है। बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने प्रोजेक्टों को बाइंड-अप कर रही हैं। इसी बीच कई एयर लाइन्स कंपनियों ने कुछ शहरों से अपनी उड़ानें बंद कर दीं। जेटलाइन ने रांची से मुंबई की सर्विस बंद कर दी और मुझे अपनी एडवांस टिकट कैंसिल करानी पड़ी। मैंने कभी शेयर नहीं खरीदे लेकिन सेंसेक्स के डाऊनफॉल का अपनी लाइफ पर भी कई तरीके से इंपैक्ट नजर आने लगा। मतलब समझ में आया। शेयर परचेज करो या न करो लेकिन वल्र्ड इकोनोमी और सोसाइटी के हर ट्रेंड को जानना और उसके बारे में क्लीयर कंसेप्ट होना जरूरी है। हम अपनी स्टडी और अपने कैरियर तक खुद को लिमिट भले कर लें लेकिन देश-दुनिया में बह रही हवा के झोंकों से खुद को अलग नहीं रख सकते। इससे यह बात भी समझ में आयी कि लाइफ में वेल्थ का इंपोटेZंस चाहे कितना ही क्यों न हो, इसे पाने का कोई भी शार्टकट रास्ता अल्टीमेटली डिसअपॉइंट ही करता है। शेयर माकेZट में पहले भी इंडियन मिडिल क्लास ने कई बार अपनी जमापूंजी लुटायी है। हर बार तौबा के बाद जो लोग इस मायाजाल में फंसते हैं, उन्हें यह समझ जाना चाहिए कि छोटी पूंजी का बहाव बड़ी पूंजी की ओर होता है। समझना तो यह भी जरूरी है कि आखिर शेयर का यह कैसा खेल है जो कुछ लोगों को बिना मेहनत किये करोड़ों की प्रोफिट दे जाता है और शेष सारे लोगों की हाड़-तोड़ मेहनत की कमाई को एक झटके में गड़प जाता है। इतने सारे लोगों को लॉस हुआ तो कुछ लोगों को प्रोफिट भी हुई ही होगी। जिन्हें डायरेकट लॉस हुआ, और जिन पर इसका इनडायरेक्ट इम्पैक्ट है, वे हमें अपने आसपास दिख रहे हैं। जिन्हें डायरेक्ट प्रोफिट हुई और जिन्हें इनडायरेक्ट प्रोफिट हुई या होगी, वे कौन और कहां हैं?
आइ-नेक्स्ट से साभार, 10.11.2008 पेज 16

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