Wednesday, January 7, 2009

नामधारी जी, बारह अजूबों से कहां अलग हैं आप?

विश्णु राजगढ़िया
दैनिक हिंदुस्तान के रांची संस्करण में झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष श्री इंदर सिंह नामधारी के विचारों को लगातार कई दिनों तक प्रमुखता से प्रकािशत किया गया।बारह अजूबे झारखंड के शीशZक इस श्रृखंला में श्री नामधारी ने उन सारे बिंदुओं को बखूबी उजागर किया है जो आज हर नागरिक के लिए चिंता का विशय है। लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि आज जो कुछ भी है, उसकी नींव एकदम इन्हीं रूपों में रखनेवालों में श्री नामधारी जी का भी नाम है। झारखंड बनने के बाद लंबे समय तक वह झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रहे। इस नाते उन्हें अवसर था कि लोकतंत्र के इस मंदिर को एक प्रतिश्ठाजनक संस्थान का दरजा देते हुए जनाकांक्षाओं का प्रतिबिंब बनाते। इसके बदले खुलेआम सारी मर्यादाओं की धज्जियां उड़ाते हुए जिस तरह इसे मदिरालय में बदल दिया गया, उसके कुछ नमूने मैं पेश कर रहा हूं। यह सारी चीजें माननीय श्री नामधारी जी के अध्यक्ष काल की हैं जिसे उनके बाद आने वाले अजूबे बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं-
• झारखंड विधानसभा में हुई नियुक्तियों में पारदिशZता और नियमों के अनुपालन की धज्जियां उड़ायी गयीं। इस पर लगातार सवाल उठे, आंदोलन हुए, अदालती कार्रवाई हुई। इसके बावजूद तरह-तरह की धांधली के रिकार्ड बना दिये गये। किस तरह के पद सृजित करके कैसे लोगों को नियुक्त किया गया और उन्हें कैसे प्रोन्नतियां दी गयीं, ऐसे हर प्रसंग चिंताजनक हैं। बाद के दौर में नियुक्तियों के लिए पैसों के लेन-देन संबंधी मामलों पर चला विवाद तो सच्चाई का बेहद छोटा अंश है।
• झारखंड विधानसभा में अधिकारियों और कर्मचारियों की प्रोन्नति में योग्यता, प्रक्रिया और समयसीमा, हर चीज का खुल्लमखुल्ला मजाक उड़ाकर पूरी तरह से मनमानी की गयी। कुछ खास कृपापात्रों को तो एक ही दिन में दो-दो और तीन-तीन बार प्रोन्नति दे दी गयी। सुबह जो आदमी चपरासी था, दोपहर में क्लर्क और शाम तक अफसर बन गया। अखबारों में खबरें छपीं। शर्म उनको मगर नहीं आयी।
• झारखंड विधानसभा परिसर में अनगिनत दुकानें, कैंटिन वगैरह हैं। समानता के अधिकार के नाते हर बेरोजगार को हक है कि वह उसे हासिल करने की प्रक्रिया में शामिल हो। लेकिन इनका आबंटन चोरी चुपके अपने चहेतों के बीच कर दिया गया। फिर, इन दुकानों से किराये की वसूली करके इसे जनता के खजाने में जमा किया जाना चाहिए था। लेकिन कितनी वसूली हुई और किसके खजाने में गयी, यह सवाल ही बना रह गया।
• झारखंड विधानसभा परिसर में 32 कमरों का एक वातानुकूलित गेस्ट हाउस है जो जनता की खून-पसीने की कमाई के खरचे से चलता है। इस गेस्ट हाउस से मिले किराये की पूरी रकम सरकार की ट्रेजरी में जमा करने का नियम है। लेकिन बेहद मामूली रकम जमा की गयी। शेश रकम कहां गयी, कोई बतानेवाला नहीं। कमरों के किराये के लिए जाली सरकुलर के जरिये एक सौ रुपये के बदले तीन सौ रुपये वसूले गये और रसीद भी जाली थमा दी गयी।
• झारखंड विधानसभा के सत्र के दौरान माननीय सदस्यों और अधिकारियों के बीच महंगे उपहार बांटे जाते हैं। ये उपहार किस बजट से बांटे जाते हैं और यह रािश कहां से आती है, यह हरदम विवाद का विशय रहा। स्व। महेंद्र सिंह ने हमेशा इस पर सवाल उठाये और लेने से इंकार किया। उनके पुत्र विनोद सिंह आज उस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष के नाते श्री नामधारी ने सिर्फ इस एक मामले पर नैतिकता का परिचय दिया होता तो शायद हम जनप्रतिनिधियों से बेहतर भूमिका की अपेक्षा कर रहे होते।
मामले और भी हैं लेकिन यहां प्रस्तुत समस्त बिंदुओं पर मीडिया पर लगातार खबरें आयीं हैं और सूचना के अधिकार के जरिये इनके बारे में दस्तावेज हासिल करने के बाद ही इन पर खुलेआम लिखा गया है। ये मामले किताबों और इंटरनेट की भी शोभा बढ़ाते रहे हैं। लेकिन झारखंड विधानसभा की चुप्पी स्वयं गवाह है कि सूचना का अधिकार आने के बाद अब संसदीय विशेशाधिकार के डंडे से लोकतंत्र को हांकना थोड़ा मुिश्कल हो गया है। आज जिस तरह एक नागरिक की जनहित याचिका ने मंत्रियों की अकूत संपति को जांच के घेरे में ला दिया है, वैसी पहल झारखंड विधानसभा से जुड़े मामलों में भी संभव है। कोई भी नागरिक सूचना के अधिकार के जरिये विगत आठ बरस के ऐसे विशयों के दस्तावेज हासिल कर सकता है और हर मामले की न्यायिक अथवा सीबीआइ जांच की मांग लेकर अदालत की शरण में जा सकता है। यह जरूरी है ताकि यह बात साफ हो सके कि झारखंड में लूट और बेशरमी की इस पौध की नींव कब किसने कहां और कैसे रखी। झारखंड के अन्य अजूबों पर ताबड़तोड़ कलम चलानेवालों को यह बताना चाहिए कि वे कहां भिन्न हैं।
(दैनिक हिंदुस्तान, रांची, 5 एवं 6 जनवरी 2009 को प्रकािशत)

2 comments:

Unknown said...

Dear Mr. Rajgadia,

Greetings !

You have written an excellent article. These politicians make us fool. When they are in the power, they misuse it as much as they can and once they are out, they play a blame game. We must expose them in public. All the best for your efforts.

HO HON said...

johar mr.rajgadia,
thanks for the articles and reality which you have written in this blog . i do agree with you that these politicians think that we are not aware of this . public must make them realise that what exactly they do when they are in power. namdhari himself is the currupt and useliess politician . how we can believe him.